वचनामृतम् ५

संवत १८६ की मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी को श्रीजी महाराज श्री गढडा स्थित दादाखाचर के राजभवन में विराजमान थे । उन्होंने सर्व श्वेत वस्त्र धारण किये थे । उनके मुखारविन्द के सम्मुख परमहंस तथा देश - देशान्तर के हरिभक्तों की सभा हो रही थी ।

तत् पश्चात श्रीजी महाराज बोले कि - 'राधिकाजी सहित श्री कृष्ण भगवान का ध्यान करना चाहिए । यदि ऐसा ध्यान करते समय मूर्ति हृदय में न दिखे तब भी ध्यान करना चाहिए, परन्तु कायर होकर उस ध्यान को नहीं छोडना चाहिए । इस प्रकार का आग्रह रखनेवाले भक्तों पर भगवान की विशेष कृपा होती है और उनकी भक्ति से भगवान उनके वश हो जाते हैं ।'

इति वचनामृतम् ।। ५ ।।