वचनामृतम् १६

परमानन्द स्वामी ने प्रश्न पूछा कि - 'श्रीमद् भागवत में कहा है कि - श्री नरनारायण ऋषि बदरिकाश्रम में रहते हुये इसे भरतखंड के समस्त मनुष्यों के कल्याण तथा सुख के लिये तप करते हैं । 'तब सभी मनुष्य कल्याण के मार्ग में प्रवृत्त क्यों नहीं होते ?'
         
श्रीजी महाराज बोले कि - 'इसका उत्तर तो श्रीमद् भागवत के - 'पंचम स्कन्ध में ही है - कि 'वे भगवान अभक्तों के लिये नहीं बल्कि भक्तों के लिये ही तप करते हैं । इस भरतखंड में अति दुर्लभ मनुष्य शरीर के महत्व को समझता जो मनुष्य भगवान की शरण में जाते हैं तथा भक्ति करते हैं उन पर अनुग्रह करने के लिये तपस्वी के समान वेष धारण करने वाले श्री नर नारायण भगवान कृपापूर्वक बडी तपस्या करते हैं । अपने में निरन्तर अत्यधिक धर्म, ज्ञान, वैराग्य, उपशम तथा ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त होकर तपस्या करते हुये वे भगवान इस जगत में रात्रि प्रलय होने तक बदरिकाश्रम में रहे हैं । भरतखंड में निवास करनेवाले जिन भक्तों के धर्मज्ञानादिक गुण अल्प होते हैं तो भी उन भगवान के गुणयुक्त तप के प्रताप से उनमें थोडे ही समय में अतिशय वृद्धि हो जाती है । इसके बाद भगवान की इच्छा से दिखने वाले अक्षर ब्रह्ममय तेज में साक्षात श्रीकृष्ण भगवान के दर्शन होते हैं । इस प्रकार भगवान के तप द्वारा भगवान के भक्तों का निर्विहन कल्याण होता है । परन्तु जो भगवान के भक्त नहीं हैं उनका कल्याण नहीं  होता । इस प्रकार से इस प्रश्न का उत्तर होता है ।'                  

इति वचनामृतम् ।।१६।। ।। ९४ ।।