वचनामृतमप ६

संवत् १८ के फाल्गुन की कृष्ण नवमी के दिन रात्रि के समय श्रीजी महाराज श्री पंचाला ग्राम में झीणाभाई के दरबार में चबूतरे पर पलंग बिछवाकर विराजमान थे । उन्होंने सिर पर श्वेत फेंटा बाँधा था, सफेद अंगरखा के साथ गर्म पोस की लाल बगलबंडी पहनी थी । सफेद दुपट्टा धारण किया था श्वेत पिछौरी ओढी थी । उनके मुखारविन्द के समक्ष परमहंसों तथा देश-देशान्तर के हरिभक्तों की सभा बैठी थी ।
         
श्रीजी महाराज बोले कि - 'मैंने बहुत देर तक विचार किया और समस्त शास्त्रों पर दृष्टि डालकर देखा तो पता चला कि - 'श्रीकृष्ण जैसा सर्वशक्ति सम्पन्न अन्य अवतार नहीं हुआ' क्योंकि अन्य जो सब उनकी अनन्त मूर्तियाँ भिन्न-भिन्न रुप से रही हैं उन सबका भाव श्रीकृष्ण भगवान ने अपने स्वरुप में दिखाया है । किस प्रकार से ? तो सर्वप्रथम देवकी द्वारा जन्म लिया तब शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण करके उन्होंने चर्तुभुज रुप में दर्शन दिया । उसके द्वारा उन्होंने लक्ष्मीपति बैकुंठनाथ का भाव अपने स्वरुप में दिखाया । उन्होंने माता यशोदा को अपने मुख में विश्वरुप दिखाया । इससे उन्होंने सहस्त्र शीर्ष रुप द्वारा अनिरुद्ध भाव स्वयं के स्वरुप में दिखाया तथा अक्रूरजी को यमुना की धारा में दर्शन दिया । इससे शेषाशी भाव दिखाया तथा युद्धस्थल में अर्जुन को विश्वरुप दिखाया कि -
''पश्य मे पार्थ ! रु पाणि शतशो।थ सहस्त्रशः ।।''
         
इस प्रकार से अनन्त ब्रह्मांड दिखाकर पुरुषोत्तम भाव बताया तथा स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा कि -

'यस्मात्क्षरमतीतो।हमक्षरादपि चोत्तमः ।
अतो।स्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः ।।'
         
इस तरह से श्रीकृष्ण ने स्वयं अपना पुरुषोत्तम भाव दिखाया ।   गोलोकवासी राधिका सहित श्रीकृष्ण तो स्वयं थे । वे जब ब्राह्मण बालक को लेने गये तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भूमा पुरुष रुप में दर्शन कराया तथा श्वेतद्वीप वासी वासुदेव ने तो स्वयं यह अवतार धारण किया था । नरनारायण को तो समग्र भारत तथा भागवत में उन श्रीकृष्ण के बारे में कहा गया है । अतः उन श्रीकृष्ण अवतार में तो भिन्न-भिन्न रुप से होकर उन भगवान की मूर्तियाँ, शक्तियाँ तथा एश्वर्य समग्र हैं । अतः वह अवतार तो अति महान है । अन्य मूर्तियों में ऐश्वर्य कम है । परन्तु उसमें तो सम्पूर्ण ऐश्वर्य हैं । इस दृष्टि से कृष्णावतार जैसा कोई अवतार नहीं है । अतः यही अवतार सर्वोपरि है । अन्य अवतार द्वारा तो थोडी ही शक्ति प्रकट की गयी है । परन्तु इस अवतार द्वारा सम्पूर्ण ऐश्वर्यो और शक्तियों  को प्रकट किया गया है । अतः यह अवतार सर्वोत्कृष्ट है । इस तरह से प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण के रुप में जिसकी अचल मति हो, और वह मति कभी भी व्यभिचारी न होती हो किन्तु किसी कुसंग द्वारा कुछ अनुचित आचरण हो गया हो तो भी वह कल्याण के मार्ग से विचलित नहीं होता । उसका कल्याण होता ही है । अतः आप समस्त परमहंस हरिभक्त भी यदि इस प्रकार भगवान में उपासना की दृढता रखें तो कभी कोई अनुचित आचरण हो जाने पर भी अन्त में कल्याण तो होगा ही ।'
         
इस प्रकार की बातों को सुनकर समस्त साधु तथा हरिभक्त श्रीजी महाराज में सर्वकारणभाव जानकर उपासना की दृढता करने लगे ।
                        
इति वचनामृतमप ।।६।।  ।। १३२ ।।